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2002 के इर्द गिर्द की बात है.
मिशन
के महारथियो के जुल्मो सितम से तंग होकर एक बहुत अच्छे गुरसिख और गरीब
सेवादारों के परम हितैषी डाक्टर कुन्दन कुमार ने मिशन छोड़ दिया.
मगर वह राह भटक गया और अपना एक बीज मंतर वाला जो सतगुरु की विचारधारा से उलट पुलट बातों का मिशन था, शुरु कर दिया.
अब उसके पास धन संपदाओं का ढेर इकट्ठा होने लगा.
तब
न जाने वो कौन से कारण थे कि हमारे मिशन के बड़े बड़े महारथी सतगुरु से
विश्वासघात करके उस कुमार स्वामी के तलवे चाटते नजर आये जिसने बीज मंतर
देना शुरु कर दिया था और कपोल कल्पित धारणाओं से अपना लक्ष्मी नारायण धाम
चलाने लगा था.
सतगुरु
बाबाजी को इससे जो पीड़ा पहुंची, उसका बयान करना भी मुश्किल है. बाबाजी के
हृदय को जख्म पहुंचा रहे थे वो मिशन के बड़े बड़े महारथी जिन्हें मैं मिशन
के नाम पै धब्बा ही कह सकता हूँ. वे कुमार स्वामी को देखते ही ऐसे पिघलते
कि सब नियमों को ताक पर रखकर उसे बाबाजी के personal कमरे तक में प्रवेश
करा देते. मिशन के ये महान कर्णधार न जाने कुमार स्वामी के कौन से अहसानों
से दबे पड़े थे. एक मिसाल दे रहा हूँ, बाकी और कौन कौन महारथी कुमार स्वामी
से मेल मिलाप बना के रखे थे, ये फिर कभी बताऊंगा.
साध संगत का पहरेदार सतगुरु का कुत्ता
अनुराग तन्हा 09818527307
बीज मंतर वाले कुमार स्वामी की जी हजूरी में लगे हमारे मिशन के महारथी
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Anurag Tanha